- पूजा घर पूर्व-उत्तर में होना चाहिए तथा पूजा यथासंभव प्रात: ६ से ८ बजे के बीच भूमि पर उनी आसन पर पूर्व उतर को और मुंह कर बैठकर ही करनी चाहिए |
- ईशान कोण में सदैव जल का एक कलश भरकर रखना चाहिए |इससे घर में सम्पनता आती है |मकान के उतर-पूर्व कोने को हमेशा खाली रखना चाहिए |
- घर में कहीं भी झाड़ू को खड़ा करके नहीं रखना चाहिए |उसे पैर नहीं लगाना चाहिए |न ही लांघा जाना चाहिए |अन्यथा घर में बरकत और धनागम के स्रोतों में वृद्धि नहीं होगी |
- पूजाघर में तीन गणेशों कि पूजा नही होनी चाहिए |अन्यथा घर में शांति नही होगी |तीन मातायों तथा दो शंखों का एक साथ पूजन भी वर्जित है |धुप,आरती,दीप पूजा अग्नि आदि को मुंह से फूंक मारकर नहीं बुझायें |पूजा कक्ष में हवन कुंड तथा धुप अगरबती हमेशा दक्षिण पूर्व में रखें |
- घर में दरवाजे अपने आप खुलने व बंद होने वाले नहीं होने चाहिए |ऐसे दरवाजे अज्ञात भय पैदा करते हैं|
- दरवाजे खोलते तथा बंद करते समय सावधानी बरते ताकि कर्कश आवाज न हो |इससे घर में कलह होता है |इससे बचने के लिए दरवाजों पर स्टॉपर लगाएं |
- खिड़कियाँ खोल कर रखें ताकि घर में रौशनी आती रहे |
- घर में जुते-चप्पल इधर उधर बिखरे हुए या उलटे पड़े हुए नहीं हों अन्यथा घर में अशांति होगी |सामान्य स्थिति में संध्या के समय नहीं सोना चाहिए |रात को सोने से पूर्व कुछ समय अपने इष्टदेव का ध्यान जरूर करना चाहिए |
- घर के मंध्य भाग में जूठे बर्तन साफ़ करने का स्थान नहीं बनाना चाहिए |
- उतार-पूर्वी कोने को वायु प्रवेश के लिए खुला रखें |इससे मन और शरीर में उर्जा का संचार होगा |
- अचल संपति कि सुरक्षा तथा परिवार कि समृधि के लिए शौचालय,स्नानगार आदि दक्षिण-पशिचम के कोने में बनाएँ |
- रोटी बनाते समय पहली रोटी अग्निदेव को अर्पित करें या गाय को खिलाएं,धनागम के स्रोत ब्देंगे |
- पूजा स्थान में रोज सुबह श्री सूक्त,पुरुष सूक्त एवं हनुमान चालीसा का पाठ करें |घर में शांति बनी रहेगी |
- भवन के चारों और जल या गंगा जल छिडकें |
- कहीं जाने के लिए घर से रात्री या दिन में के ठीक १२ बजे न निकले |
- किसी महत्वपूर्ण काम के लिए दहीं खाकर या मछली का दर्शन कर घर से निकले |
- घर में या घर के बाहर नाली में पानी जमा नहीं रहने दें|
- घर में मकड़ी का जाल नहीं लगने दें |अन्यथा धन कि हानि होगी |
- शयनकक्ष में कभी झूठे बर्तन नहीं रखें,अन्यथा परिवार में क्लेश और धन कि हानि हो सकती है |
- भोजन यथासम्भव आग्न्य कोण में पूर्व कि और मुंह कर बनाना और पूर्व कि और ही मुंह करके खाना चाहिए |
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